Tuesday 1 December 2015

गाड़ियाँ


कुछ गाड़ियाँ  ऊपर गई,
कुछ गाड़ियाँ नीचे आई,
कुछ और गाड़ियाँ ऊपर गई,
कुछ और गाडियाँ नीचे आई.
कुछ गाड़ियाँ किनारे की गली में घुस गई,
कुछ गाड़ियाँ साँय-साँय करती हुई सीधे निकल गयी. 


मैं उन सब गाड़ियों को दूर खड़ा देख रहा था, 
सोच रहा था, काश, इस मनहूसियत में कोईबदलाव आये,


एक के पीछे एक, दो गाड़ियाँ ठुक जाएँ,
कोई कमअक्ल, जल्दबाज़ी में एक गाडी के निचे आ जाए,
कोई बिदका हुआ कुत्ता, मुल्ला या पण्डा अचानक से यहाँ खड़े कमक्कालों के खून का प्यासा हो जाए,
दो गाड़ीवाले, लड़ते लड़ते, एक दूसरे के सीनों को, अपनी बाप की बंदूकों से काली छन्नी बना दें,
दूर खड़ा वह ठुल्ला बिना वजह, पास खड़े भिकारी का सर खोल दे,
कहीं दूर से आता Indian Oil का वह टैंकर, एक धमाके के साथ सबकी तेल बनने की प्रक्रिया शुरू कर दे. 


हाँ, वो नहीं आई,
और अब शायद आएगी भी नहीं.